Wednesday, June 29, 2011

चौपाई :- जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिंहुँ लोक उजागर ।।  (1)

अर्थ : श्री हनुमानजी ! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है । हे कपीश्वर ! आपकी जय हो। तीनों लोकों ( स्वर्ग-लोक, भू-लोक, और पाताल-लोक ) में आपकी कीर्ति है ।

गूढार्थ :  श्री हनुमानजी के गुण अपार है ।  भगवान और उनके भक्तों के गुणोंका वर्णन कोई्र मनुष्य कैसे कर सकता है । जो महापुरुष हो गये हैं, उन्हे गुणोंकी भूख रहती थी । उन्हे ऐसा लगता था कि जब भगवान के पास जाऊँगा तब सभी अच्छे गहनोंको (गुणोंको) धारण कर जाऊँगा । मुझे देखकर भगवान कहेगा कि, ‘शाबाश ! मेरा लडका कमाकर आया है । गुणोंकी भूख लगना यह विमल भूख है । इसलिए मलिन भूख को निकालकर गुणोंकि भूख रखनी चाहिए । इसमें वृत्ति तो रहेगी और कष्ट नहीं रहेंगे । जैसे गुणोंकी भूख होती है वैसेही आत्मीयताकी भूख लगती है । गुण तो बहुत इकठ्ठे किए हैं परन्तु अभी तक भगवान के साथ आत्मीयता नहीं साधी है । पहले गुणोंकी भूख लगती है और फिर भगवान के साथ आत्मीयता साधनेकी विमल भूख लगती है ।  उसे ऐसा लगता है कि इस जगतमें मैं आया हूँ, अब मैं जगदीश के साथ आत्मीयता साधूंगा । इस प्रकार प्रभु के साथ आत्मीयता साधनेकी मनुष्य को भूख लगती है यह सच्चा वैभव है ।

इस सृष्टि में वैभव वाला कौन? जो भगवान का बना वह । भगवान के चरणोंपर संपूर्ण विश्वका वैभव है। प्रभु के साथ आत्मीयताकी भूख लगना यह बडी से बडी बात है । हनुमानजी के जीवन पर यदि दृष्टिपात करेंगे तो उनको गुणोंकी भूख थी तथा भगवान के साथ आत्मीयताकी भूख भी थी । इसीलिए तुलसीदासजी लिखते हैं, ‘जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।’ इस विषय में जो कुछ भी लिखा जाय, वह बहुत ही थोडा है । यहाँ संक्षेप मे हनुमानजी के चरित्र द्वारा गुणों का दर्शन कराया जा रहा है।

हनुमानजी पहली बार जब श्रीराम और लक्ष्मणसे  पंपा सरोवर पर मिले है, उस प्रसंग को देखनेपर मालूम होता है कि हनुमानजी में विनय, विद्वत्ता, चतुरता, दीनता, प्रेम और श्रद्धा आदि विलक्षण गुण विद्यमान है।

अपने मन्त्रियों के साथ ऋष्यमूक पर्वतपर बैठे हुए सुुग्रीव की दृष्टि पम्पा सरोवर की ओर जाती है तो वे देखते है कि हाथोंमे धनुष्यबाण लिए हुए बडे सुन्दर, विशालबाहु, महापराक्रमी दो वीर पुरुष इसी ओर आ रहे है। उन्हे देखते ही सुग्रीव भयभीत होकर श्री हनुमानजी से कहते है कि, हनुमान! तुम जाकर इनकी परीक्षा तो करो। यदि वे बाली के भेजे हुए हो तो मुझे संकेत से समझा देना, जिससे मैं इस पर्वत को छोडकर तुरंत भाग जाऊँ । सुग्रीव  की आज्ञा पाकर हनुमानजी ब्रम्हचारी का रुप  धारण कर वहाँ जाते है और श्रीरामचंद्रजी को प्रणाम करके उनसे प्रश्न करते है । रामचरित मानस मे तुलसीदासजी ने उसका बडा सुन्दर वर्णन लिखा है-

को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा ।   छत्री  रुप  फिरहु  बन बीरा ।
      कठीन भुमि कोमल पद गामी ।  कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी ।।
           की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ ।  नर  नारायण की तुम्ह दोऊ ।।

श्रीरामचंद्रजी हनुमानजी की विद्वत्ता की सराहना करते हुए लक्ष्मणजी से कहते है कि लक्ष्मण ! देखो यह व्यक्ति ब्रम्हचारी के वेषमें कैसा सुन्दर भाषण करता है । अवश्यही इसने संपूर्ण शास्त्र बहुत प्रकार से पढा है । इसने इतनी बाते कही किंतु इसके बोलने मे कहीं कोई भी अशुद्धि नहीं आयी ।
वाल्मीकि रामायण में तो श्रीरामने यहाँ तक कहा है कि इसने अवश्यही सब वेदों का अभ्यास किया है, नहीं तो इस प्रकार का भाषण कैसे कर सकता है । इसके सिवा और भी बहुत प्रकार से हनुमानजी के वचनों की सराहना करते हुए कहते हैं कि यह वेदों मे सतत डुबकी मारनेवाला, व्याकरण का प्रगाढ ज्ञान रखनेवाला तथा व्यवहार एवं नीति शास्त्र का पूर्ण जानकार प्रभावशाली दलीलों के साथ स्पष्ट और स्वच्छ भाषण करनेवाला यह अहंकार शुण्य व्यक्ति कितना विद्वान होगा, कितना अभ्यास होगा इसका । मर्यादा पुरुषेात्तम राम हनुमानजी को विद्वान होने का प्रमाणपत्र प्रदान कर रहे है । ज्ञानीजन पूर्ण विचार के उपरान्त ही प्रमाणपत्र देते है और हम तो उन्हीको विद्वान कहकर पुकारते है जिनका कहा हुआ एक भी शब्द समझमे न आए ।

भगवान श्रीराम लक्ष्मणजी से कहते है कि जिस  राजा के पास ऐसे बुध्दिमान बुध्दिमान दूत हों, उसके समस्त कार्य दूतकी बातचीत से ही सिध्द हो जाया करतें हैं ।  वे ‘बुद्धिमतां वरिष्ठम्’ हैं ।

जब हम हनुमानजी की उपासना करते है, उनकी पूजा करते है तो स्थूल पूजाकी परिणति गुण पूजामें होनी चाहिए । ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’ । ‘हनुमत भूत्वा हनुमत यजेत्’ । मै हनुमानजी का भक्त हँू तो मुझे उनके गुणों का ज्ञान होना चाहिए । हनुमानजी कैसे है तो तुलसीदासजी लिखते है ‘‘जय हनुमान ज्ञान गुणसागर’’ हनुमानजी तो ज्ञान और गुणों के सागर है । उसी प्रकार मुझमें भी तो कुछ गुण होने चाहिए । जगतमे गुणोंका मुल्य केवल गुणी ही कर सकता है । हनुमानजी के पास सभी गुण है । भगवान के जैसा गुणी ही गुणोंकी कद्र कर सकता है।

हमारे गुणोंकी कद्र भगवान कर सकते है, परन्तु हमारे नैसर्गिक गुण कौनसे है ? शास्त्रकार कहते हैं कि कर्म हमारे नैसर्गिक गुण है । गुणोंकी सुगंध यांनी कमों‍र्की सुगंध । सत्कर्म हमारे गुण है। सत्कर्म का फल आपको निश्चित मिलेगा इसका विश्वास रखेा । कुछ लोग कहते है, ‘हमको अपने कर्मोका फल नही मिलता’ । परन्तु ऐसा कहना गलत है । मनुष्य की तुरन्त फल प्राप्ती की चाह रहती है । बैंकमे तुमको तुम्हारे खाते मे रखे हुए पैसे निकालने के लिए टोकन लेना पडता है । एक ही खीडकी रहती है तब पैसे निकालने वालोंकी भीड होगी तो पंक्तिमे खडा रहना पडता है। ‘पक्तिमे खडे रहो’ अर्थात प्रतीक्षा करो। पंक्तिमे खडा रहकर फलका चिन्तन करने में एक भिन्न ही मजा है । आज टिकट सुरक्षित करके आठ दिन के बाद नाटक देखने जाने मे भी एक मजा है। प्रतीक्षा करने मे मजा है।

कुछ लोग कहते है ‘हमको प्रतीक्षा करना नही भाता है । थाली (परोसी हुई)  सामने रखकर आधा घन्टा देखते बैठना हमें उचित नही लगता । समयपर कामपर पहुँचना चाहिए । समय धन है । आपको समय का मूल्य नही है । इसका कारण हमारा भगवान पर विश्वास नहीं है । भगवान के राज मे देर है अंधेर नही यह बात ध्यान मे रखों।

कितने ही लोग कहते है कि ‘अमुक अमुक सज्जन व्यक्ति मुसीबत मे है’, पर अन्य लोग चैन मजा कर रहे है । ऐसे व्यक्ति को कहने का मन होता है कि फिर तुम भी दुर्जन बनों । सज्जन बनने से चैन, मजा करने को मिलता है यह समझ ही गलत है । तुमको सज्जन बननेसे नफरत है । तुम्हारी दृष्टिमे सज्जनता की अपेक्षा मौज को अधिक महत्व है । सज्जनता एक स्वतंत्र बात है । सज्जन व्यक्ति को सोलह आने विश्वास होता है कि अपने कर्म उपर लिखे जानेवाले है । हम सज्जन है कारण हम दुर्जन नही बन सकते । जो मांगता है और उसको मिलता है उसकी अपेक्षा जो मांगता नही है उसका मूल्य अधिक है तात्पर्य ‘वेट ’ प्रतीक्षा करना सीखो।

भगवान सर्व विद्य: है । वे सब जानते है । वे हमारे कर्म और उनके फल सब जानते है । वे हमारी साधना के साधन, साधना के हेतु आदि सब कुछ जानते है । संक्षेप मे भगवान हमारे संकल्प से लेकर सबकुछ जानते है । उनसे हमारी कोई भी बात गोपनीय नहीं रहती । जिस प्रकार हनूमानजी को गुणोंकी भूख थी, उसी प्रकार उनके उपासकोंको भी गुणोंकी भूख रहनी चाहिए तथा सतकर्म करने चाहिए । भगवानको अच्छा लगे ऐसे कर्म करने चाहिए ।

‘जय कपिस तिंहुँ लोक उजागर’ अर्थात् हनुमानजी त्रैलोक्य में प्रसिद्ध हैं, सबको अच्छे लगने वाले तथा यश से शोभायमान हैं । भगवान! तुम्हारे पास एक महान यश हैं। कौनसा यश? कोई भी तुम्हारी ओर मुडा कि तुम उसका काबू पा लेते हो । यह तुम्हारा यश है । सब लोग कहतें हैं, तुझे भगवान के पास जाना हो तो स्वच्छ बनकर जा, प्रवित्र बनकर जा, अपवित्र मत जा, नहाये बिना मत जा, पापी मनुष्य के लिए वहाँ जगह नहीं है । हमारे शास्त्रकार हमें डराते हैं, दूसरे लोग हमें धमकाते हैं । किंतु एक बात निश्चित है भगवान! जो तुम्हारे पास आता है, वह कैसा है यह तुम नहीं देखते । मैं पापी हूँ या हरामखोर हूँगा किंतु एक बार तुमने काबू कर लिया कि फिर तुम कहते हो....
  अपि  चेत्सुदुराचारो  भजते  मामन्यभाक ।
   साधुरेव स मंतव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स: ।।  (गीता 9-30)
यह मेरी ओर मुडा है इसलिए वह साधू है । जिस क्षण तुमने काबू कर लिया उसी क्षण वह साधू बनता है, उसी क्षण महान बनता है यह तुम्हारा यश है । जितना तुम्हारा यशस्वी लडका आगे बढता है उतना तुम खिलते हो । कौनसा यश है यह? सृष्टि के साथ लडना यह बडी बात नहीं है, अपितु वृत्ति के साथ लडना यह बडी बात है । यह सत्य है । इस जगत का संपूर्ण वैभव मेरे सामने थाली परोसकर रखा है। अब भोग या भक्ति? इसमें से कौनसी वृत्ति ली ? इस जगतमें रहकर, घर-घर घुमकर भी इस जगत की ओर मैने कौनसी वृत्ति मान्य की? इसपरसे मैं सफल रहा या असफल रहा यह निश्चित होता है । भोग या भक्ति यह वृत्ति है । मैने कौनसी वृत्ति को पकडा ? अनंत प्रलोभनों को लात मार कर जिन्होने भक्ति पकडी है वे बडे ही हैं, इसमें संदेह नहीं है।

भक्ति करते समय अनेक प्रलोभन आते हैं उन सबको छोडकर जिन्होने भक्ति पकडी वे बडे लोग ही हैं, वे विजयी मनुष्य हैं, यशस्वी मनुष्य हैं - वे भगवान को प्रफुल्लित करेंगे।  हनुमानजी की भक्ति से भगवान प्रसन्न हुए तथा उनकी कीर्ति तीनों लोकोंमें व्याप्त हैं । इसीलिए तुलसीदासजी लिखते हैं ‘जय कपिस तिंहुँ लोक उजागर ।’ हमें यदि भगवान के प्रिय बनना है तो हमें भक्ति की ओर मुडना चाहिए तथा ईश प्रेरित कर्म करने चाहिए । कर्म दो प्रकार के होते है । एक वासना प्रेरित और दुसरे वासुदेव प्रेरित । वासना प्रेरित कर्मोंका प्रारब्ध बनता है । ईश प्रेरित कर्मों से जीवन विकास होता है । ईश प्रेरणा होने के लिये भगवान का चिन्तन का साधन मन है, अत: मनको सदा जाग्रत रखो ।

संक्षेप मे मनसे ईश्वर चिन्तन होना चाहिये और मन का अभ्यास होना चाहिये । इसलिए पाठ करते समय हमें मनको हनुमानजी की मूर्ति मे एकाग्र करके चिन्तन करना चाहिए । तथा सत्कर्मों को जीवन में लाने का प्रयत्न करना चाहिये उसके लिए भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये कि हे पवनसुत आप तो बल के धाम है, मुझे भी शक्ति प्रदान कीजिए ।

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