Wednesday, June 29, 2011

Hanuman Chalisa Intoducton श्री हनुमान चालीसा प्रस्तावना

परम पूज्य माताजी स्व. सौ. राजकँवर लक्ष्मीिनवास राठी
की पावन पूण्य स्मृतिमें सादर समर्पित
Dedicated to my Mother Late Sow. Rajkanwarbai Rathi


।। श्री हनुमते नम: ।।
श्री हनुमान चालीसा
प्रस्तावना
हमारी भारतीय संस्कृति में राम और कृष्ण की भांति हनुमानजी भी संस्कृित के आधार स्तंभ तथा निष्ठा के केन्द्र हैं । प्रत्येक भारतीय के हृदयमें उनका प्रेम शासन अभी भी चल रहा है । हनुमानजी  भक्तों में जेष्ठ, श्रेष्ठ तथा अपूर्व हैं । ‘‘नर अपनी करनी करे तो नर का नारायण हो जाए’’ ।  इस प्रकार हनुमानजी ने अपने अंदर देवत्व स्वयं निर्माण किया है । मानव भी उच्च ध्येय और आदर्श रखें तो देवत्व प्राप्त कर सकता है । हनुमानजी ने अपने कतृ‍र्त्व से देवत्व प्राप्त किया है । जिनकी स्वतंत्र उपासना की जाती है । तथा जिनका स्वतंत्र मंदिर भी है । जिस प्रकार भगवान शिव का शिवालय नंदी के बिना अधूरा रहता है । उसी प्रकार भगवान श्रीराम के देवालय की पूर्णता हनुमान के मूर्ति के बिना अधूरी रहती है । हनुमानजी के मंदिर में रामजी की मूर्ति नहीं तो भी चलेगी, ऐसी अलौकिकता हनुमानजी में है । जन-समुदाय में रामजी के समान ही आदरणीय स्थान हनुमानजी को प्राप्त हुआ है । हनुमानजी की रामजी के प्रति एकनिष्ठता और एकनिष्ठ भक्ति अपूर्व है ।
गोस्वामी तुलसीदासजी को भगवान श्रीराम के दर्शन हनुमानजी की कृपासे ही प्राप्त हुए थे। इसीलिए गोस्वामीजी ने हनुमानजी को अपना गुरु माना है । तथा हनुमानजी के प्रति उनकी अपार श्रध्दा थी । तुलसीदासजी ने हनुमानजी पर कई रचनायें की है जैसे हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान बाहुक ईत्यादि उन्हीमें से हनुमान चालीसा एक है । ‘‘हनुमान चालीसा’’ उनके द्वारा रचित एक बहुत ही सिद्ध एवं लोकप्रिय ग्रंथ है । ‘हनुमान चालीसा’ में उन्होने हनुमानजी के चरित्र तथा गुणों का वर्णन किया है ।  नियमीत श्रध्दासे भक्ति-भावसे यदि हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो मनुष्य मनवांछीत फल पाता है तथा उसकी मनोकामना पूर्ण होती है ।
आज मानव जीवन जड, भोगवादी तथा भावशुण्य बनता जा रहा है । जहाँ थोडी बहुत धार्मिकता एवं अध्यात्मिकता है, वहाँ दम्भ तथा दिखावे का प्रदर्शन ज्यादा हो रहा है । ऐसी विषम स्थिति में मनुष्यमात्र के लिए विषेतया युवकों और बालकों के लिए भक्त श्रेष्ठ श्री महावीर हनुमानजी की उपासना अत्यंत आवश्यक है । क्योंकि उनके चरित्र से हमें ब्रम्हचर्य व्रतपालन, चरित्र रक्षण, बल, बुध्दि, विद्या इत्यादि गुणों का विकास करने की शिक्षा प्राप्त होती है । हनुमानजी अपने भक्तों को बुध्दि प्रदान कर के उनकी रक्षा करतें है ।
हनुमानजी में राम का नाम और राम का काम, भक्ति और सेवा का अद्भ्ूत समन्वय दिखायी देता है । विचारोंकी उत्तमता के साथ भगवद अनुरक्ति और सेवा व्यक्ति के पूर्ण विकास की द्योतक है, जो हनुमानजी के चरित्र में देखी जा सकती है । जीवनमें केवल राम-राम रटने से नहीं चलता। रामका नाम और राम का काम दोनों का जीवनमें समन्वय होना चाहिए, यह हनुमानजी के चरित्र से हमें सीखने को मिलता है । हनुमानजी जिस तरह हर पल रामजी का ध्यान तथा स्मरण करते थे उसी प्रकार रामजी का काम करने को हर पल तैयार रहते थे । ‘‘राम काज करिबे को आतुर’’ ऐसा ‘हनुमान चालीसा’ में उल्लेख है । उसी प्रकार हमें भी भगवान के कार्य के लिए हरपल कटिबद्ध होना चाहिए । तथा हनुमानजी की भांति हमारे मन को सुंदर, सुगंधित, हृदय को मृदुल तथा बुद्धि को सुन्दर बनाना होगा । इसके लिये एक मात्र उपाय है, तथा हमारे श्रुतियों का गाया हुआ महामंत्र है ‘‘स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्’’ स्वाध्यायमें यह अपेक्षित है कि व्यक्ति अपने जीवन की पोथी खोलकर बैठें और श्रुति-स्मृति के विचारों को जीवन-स्पर्शी बनाने के लिये आत्मनिरीक्षण करके मनन और चिन्तन करें ।
उपासना में उपास्य जैसा बनना अभ्यास है । उपासना शास्त्रमें माना जाता है ‘‘रामो भूत्वा रामं यजेत्’’, ‘‘देवो भूत्वा देवं यजेत्’’ यानी हम जिस किसी भी देवता की उपासना करतें है उनके जैसे विचार हैं, मंतव्य है, गुण है वह हमें अपने भीतर आत्मसात करने चाहिए । तथा उसके लिये साधना करनी चाहिए । साधना के बिना उपासना निरर्थक है ।
   माथेपर चंदन लगाकर आदमी  अध्यात्मिक नहीं बनता और कोई शनिवार का उपवास करने से भी अध्यात्मिक नहीं बनता । अध्यात्मिकता  जीवन  का  मानसिक  और  बौध्दिक  विकास (Psychological and Intellectual development) है। दैवी  गुणों से संपन्न  हमारे  उपास्य देवता के जीवनका अध्ययन कर उनके दिव्य गुणों को अपने जीवनमें लाने का प्रयत्न करना चाहिए ।
नैतिक मूल्योंपर अविचल निष्ठा रखनी पडती है । इस सृष्टिमें भगवान ने भेजा है यह मनुष्य को समझना चाहिए । इस सृष्टिमें हमारा आगमन होने पर शांति से जीवन व्यतीत करना, भक्तिपूर्ण अंत:करण से जीना और अंतमे आत्यंतिक समाधान से सृष्टि से विदा लेना यह अपना ध्येय है । मानव को प्रभु से मिली हुई दो शक्तियाँ है । मन और बुध्दि !   इन शक्तियों के विकास द्वारा मानव स्वयं भगवान बन सकता है । ‘मुझमें भी कंकड में से शंकर, नर से नारायण और जीव से शिव बनने की शक्ति है’ ऐसा विचार केवल मनुष्य को ही आ सकता है । अनंत जन्मों की साधना के बाद प्राप्त हुए इस चिंतामणि स्वरुप मानव देह को उज्वल बनाकर प्रभु के चरणों मे अर्पण करना ही श्रेष्ठ भक्ति है । इसलिए सृष्टि में कैसे रहें, किस तरह जीयें और प्रभु की तरफ कैसे जायें यह हमारी संस्कृति हमें सिखाती है ।
जीवनमें ज्ञान-कर्म और भक्ति का समन्वय होना चाहिए । कर्मयोग का हाथ, ज्ञानी की आँख और भक्त का हृदय इन तीनों के समन्वय से त्रिवेणी संगम होता है । ऐसा त्रिवेणी संगम हमें हनुमानजी के चरित्र में दृष्टिगोचर होता है ।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने ‘‘हनुमान चालीसा’’ में इन सभी गुणोंका चित्रण किया है, तथा गागरमें सागर अमृत उन्होने हनुमान चालीसा में भरा है ्। श्री हनुमानजी के चरित्रपर कुछ लिखना यह मुझ जैसे साधारण मनुष्य के लिए असंभव है । मैने संतो के बिखरे हुए  प्रवचन  रुपी  मोतीयों को इकठ्ठा कर एक माला बनाने का प्रयास किया है । तथा ‘‘ हनुमान चालीसा ’’ के दोहों एवं चौपाईयों का उनके आधार पर गहराई से गूढार्थ निकालने का प्रयास किया है । मैंने इसमें अध्ययन के लिए गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित  ‘‘हनुमान अंक’’ का भी आधार लिया है ।
हनुमानजी के उपासकों के लिए यह विचार बहुत उपयोगी सिध्द होंगे तथा उन्हें हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे। हनुमानजी के चरित्र से प्रेरणा प्राप्त कर आदर्श जीवन के मार्गपर अग्रसर होने की परमात्मा सभी को शक्ति प्रदान करें यही अभ्यर्थना ।
हनुमानजी हमारे आदर्श हों तथा भगवान श्रीराम हमारे सहायक बने, इन दो महापुरूषोंके चरित्र को दृष्टि के सन्मुख रख कर अपने जीवन को सुयोग्य रीति से गढने के लिये भगवान हम सब की वृत्ति बुध्दि को वैसा बनायें तथा हमें योग्य शक्ति प्रदान करें यही प्रार्थना ।
एक मानसशास्त्रीय सिध्दान्त है कि जो रटा जाता है या रटाया जाता है, जो सिखाया जाता है उसे शिक्षा कहते है और जो उठाया जाता है उसे संस्कार कहते है ।   हमारे यहाँ छोटे बच्चों से लेकर वृद्धोंको सब को हनुमान चालीसा का पाठ कंठस्थ है । तुलसीदासजी ने जो हनुमत चरित्र हनुमान चालीसा में लिखा है उस चरित्र को पढकर जीव को लगना चाहिए कि मुझे भी ऐसा बनना है । हनुमान चालीसा के विचारों को एक नया दृष्टिकोण देने का प्रयास किया है । उसे पढकर मानव जीवन अवश्य प्रकाशित होगा ।
संस्कार और शिक्षामें बहुत बडा मानसशास्त्रीय अंतर है । बच्चों को ऐसे चरित्र दिखायें कि उनमें वैसा बनने की लालसा निर्माण हो । ‘तू ऐसा बन’ किसी की ऐसी आज्ञा व्यक्ति नही मानता है । भीतर की आत्मशक्ति की आज्ञा ही मनुष्य मानता है । आत्मशक्ति ने कहा कि मुझे ऐसा बनना है, मनुष्य उस मार्ग पर चलने लगता है ।     
भगवान सबको हनुमानजी की तरह भक्ति-पथ पर आगे बढने की शक्ति प्रदान करें यही प्रार्थना ।

प्रस्तुतकर्ता
भंवरलाल लक्ष्मीनिवास राठी,                  
धर्माबाद जि. नांदेड, (महाराष्ट्र)          

2 comments:

  1. ai Hanuman.The best time to recite hanuman chalisa in the morning and at night. Those under the evil influences of the Saturn should chant the Hanuman Chalisa at night 8 times on Saturdays for better results.

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  2. बहुत बढ़िया लगा आपका लेख

    सीताराम

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